नाथ सम्प्रदाय के सिद्ध पुरुष बाबा गम्भीर नाथ
भारत की पावन धरा पर विभिन्न पंथों एवं सम्प्रदायों का उद्भव एवं विकास हुआ है। इसलिए हमारे देश को विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का एक सुरम्य गुलदस्ता कहा जाता है। हमारी सनातन संस्कृति सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण की कामना करती है।
हिन्दू धर्म, दर्शन और साधना में नाथ सम्प्रदाय का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रहा है। नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख सन्तों में बाबा गम्भीर नाथ का नाम बड़े आदर एवं श्रद्धा के साथ लिया जाता है। वे नाथ सम्प्रदाय के बीसवीं सदी के महान सिद्ध पुरुष माने जाते हैं।
बाबा गम्भीर नाथ ने नाथ सम्प्रदाय के योग सिद्धान्त को पुनर्जीवित किया। नाथ योग परम्परा में बाबा गम्भीर नाथ का विशिष्ट स्थान है। उन्होंने मानवता को योग शक्ति से सम्पन्न किया। लम्बी साधना के बल पर उन्होंने हठयोग, राजयोग और लययोग के क्षेत्र में विशेष सिद्धियां प्राप्त कीं।
गम्भीर नाथ का जन्म जम्मू कश्मीर राज्य के एक समृद्ध परिवार में हुआ था। बचपन से ही उनके मन मे तरह-तरह के विचार आना शुरू हो गए। अन्य बालकों की भांति उनका मन ना तो खेल-कूद में रमता और ना पढ़ाई-लिखाई में। घन्टों वे एकान्त में बैठे रहते। वे बहुत ही सरल स्वभाव के थे और किसी को भी कष्ट में देखकर उनका मन द्रवित हो उठता।
युवा अवस्था आते-आते उन्हें सांसारिक जीवन से वैराग्य उत्पन्न हो गया। जिस अवस्था में लोग अपनी घर गृहस्थी बसाते हैं और जीवन के सुख भोगते हैं उस अवस्था में गम्भीर नाथ शान्ति की तलाश में इधर-उधर भटकते रहते। वह अक्सर घर से निकल पड़ते और किसी एकान्त स्थान पर जाकर घन्टों चिन्तन करते रहते। कभी-कभी वे श्मशान में जाकर बैठ जाते और जीवन के रहस्यों के बारे में सोचते रहते। उनका मन बड़ा अशान्त रहता।
एक दिन गम्भीर नाथ की मुलाकात नाथ सम्प्रदाय के एक संन्यासी से हुई। उनसे बातचीत करके और कुछ दिन उनके साथ सत्संग कर गम्भीर नाथ उन संन्यासी महाराज से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उनसे दीक्षा प्रदान करने का निवेदन किया। वे उनके शिष्य बनना चाहते थे।
उन संन्यासी जी ने गम्भीर नाथ को सलाह दी कि वे उत्तर प्रदेश जायें और वहां गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मन्दिर के महन्त से दीक्षा ग्रहण करें। कहां कश्मीर और कहां गोरखपुर। दोनों के बीच हजारों मील की दूरी। उस समय आजकल के जैसे यातायात के साधन भी नहीं थे। अकेले इतनी लम्बी यात्रा करना दुर्गम और कष्टसाध्य था, मगर गम्भीर नाथ के मन में गोरखपुर जाकर गोरखनाथ मन्दिर के महंत से दीक्षा लेने की ऐसी धुन सवार हुई कि वे यात्रा की सारी कठिनाइयों को झेलते हुए एक दिन गोरखनाथ मन्दिर जा पहुंचे।
गम्भीर नाथ गोरखपुर के गोरक्षपीठ के महन्त बाबा गोपाल नाथ जी से मिले और उनसे दीक्षा प्राप्त की। उन्होंने गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ को ही अपनी तपस्थली बना लिया। वे पीठ की एक छोटी सी कोठरी में रहकर ही गुरु गोरखनाथ द्वारा प्रतिपादित योग की निरंतर साधना करने लगे। उन्होंने अनेक धर्मशास्त्रों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने लम्बी साधना की। उन्होंने योग साधना के क्षेत्र में बहुत ख्याति अर्जित की।
गोरक्षनाथ पीठ नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। पूरे देश में फैले नाथ सम्प्रदाय के विभिन्न मठों एवं मन्दिरों की देखरेख गोरक्षनाथ मन्दिर से ही की जाती है। गोरखनाथ मन्दिर की स्थापना के बाद से ही यहां पीठाधीश्वर या महंत की परम्परा रही हैं गुरु गोरखनाथ के प्रतिनिधि के रूप में सम्मानित संत को महंत की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
कठोर साधना और पीठ की लम्बी सेवा के उपरान्त बाबा गम्भीर नाथ गोरक्षनाथ पीठ के महन्त बने। बड़ी निष्ठा और लगन के साथ उन्होंने मठ के मानव कल्याण से जुड़े कार्यों को आगे बढ़ाया। उन्होंने गुरु गोरखनाथ की योग साधना पद्धति का प्रतिनिधित्व करते हुए योग एवं ज्ञान का समन्वय स्थापित किया। उन्होंने महर्षि पतंजलि एवं गोरखनाथ की योग परम्परा के समन्वयन का कार्य भी किया। नाथ सम्प्रदाय मे बाबा गम्भीर नाथ का महत्वपूर्ण स्थान है।
सुरेश बाबू मिश्रा
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, बरेली
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बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !