अमेरीका में भारतीयों की नौकरी पर आया संकट
भारतीय सरकार की ही तरह अमेरीका के राष्ट्रपति ने अपने चुनावों में राष्ट्रवाद को ध्यान में रखते हुए , लोगों से अमेरिकन्स फर्स्ट का वादा किया था । जिसे अब ट्रंप सरकार निभाती दिख रही है । अगर ऐसा होता है तो, अमेरिका में बसे हजारों भारतीयों की नौकरियां खतरे में आ जाएगीं ।
दरअसल अमेरिकी संसद कांग्रेस में एक बिल लाया गया है, जिसके तहत विदेश (भारत में) में बैठे कॉल सेंटर के कर्मचारियों को न सिर्फ अपनी लोकेशन बतानी होगी और ग्राहकों को अधिकार देना होगा कि वे अमेरिका में सर्विस एजेंट को कॉल ट्रांसफर करने को कह सकें. ओहायो के डेमोक्रेट सेनटर शेरॉड ब्राउन ने इस बिल को पेश किया है. बिल में उन कंपनियों की एक सार्वजनिक सूची तैयार करने का प्रस्ताव है, जो कॉल सेंटर की नौकरियां आउटसॉर्स कर सकती हैं. साथ ही, इसमें उन कंपनियों को फेडरल कॉन्ट्रैक्ट्स में प्राथमिकता दिए जाने का भी प्रस्ताव है, जिन्होंने ये नौकरियां विदेशों में नहीं भेजी हैं.
कंपनियों को देते रहे प्रोत्साहन
सेनटर ब्राउन ने कहा कि अमेरिकी व्यापार एवं कर नीति उनके लिए लंबे समय तक कॉर्पोरेट बिजनेस मॉडल को प्रोत्साहन देती रही, जिसने ओहायो में संचालन बंद किया, जिसने अमेरिकी कर्मचारियों के कीमत पर टैक्स क्रेडिट के जरिए पूंजी जुटाई और रोनोसा, मेक्सिको, वुहान, भारत और चीन में कारोबार शिफ्ट कर लिया.
कई कंपनियों ने बंद किए कॉल सेंटर
शेरॉड ब्राउन के मुताबिक, अमेरिका में कई ऐसी कंपनियां हैं, जिन्होंने पूरे देश में कॉल सेंटर बंद किए और भारत या मेक्सिको में शुरू किए हैं. बड़े पैमाने पर जॉब आउटसोर्सिंग के चलते अमेरिका में नौकरियों पर संकट छा गया.
कर्मचारियों को मिलना चाहिए हक
कम्यूनिकेशंज वर्कर्स ऑफ अमेरिका की ओर से की गई एक स्टडी के मुताबिक, अमेरिकी कंपनियों ने मिस्र, सऊदी अरब, चीन और मेक्सिको जैसे देशों में भी अपने कॉल सेंटर्स खोले हैं. भारत और फिलीपींस, अमेरिकी कंपनियों द्वारा कॉल सेंटर जॉब की ऑफशोरिंग के लिए टॉप 2 डेस्टीनेशंस हैं.
अमेरिकी वर्कर्स का करियर बचाने की जरूरत
ब्राउन के मुताबिक, अमेरिका में ऐसे कई वर्कर हैं, जो कई सालों तक कॉल सेंटर्स में काम कर चुके हैं, इसके बारे में नॉलेज रखते हैं. इन्होंने इन सेंटर्स की बेहतरी के लिए योगदान भी दिया है. हमें उनके योगदान की कीमत समझने की और उनका करियर खत्म न होने देने की जरूरत है.