ऐवान-ए-नियाज़िया में बच्चों ने किया तक़रीर के ज़रिए अपनी ईमानी अक़ीदत और जज़बात का इज़हार
फैज़ान-ए-नियाज़िया वेलफेयर सोसायटी की तरफ से हर साल की तरह इस साल भी सीरत
व फज़ीलते इमाम हुसैन (अ0स0) की शहादत के मोज़ू पर छोटे-छोटे बच्चों
का तकरीरी प्रोग्राम किया गया, जिसमें इन बच्चों ने इमाम हुसैन (अ0स0) की शहादत
उनकी फज़ीलत और मोहर्रमदारी, ताज़ीया, अलम, हरे कपड़ों पर अपनी-अपनी तक़रीरें
कुरआन, हदीस और औलिया, अल्लाह के फरमान की रोशनी में की। जलसे की शुरूआत
तिलावत-ए-कुरआन और नात-ए-पाक से की गई, बाद इसके सबसे छोटे बच्चे मुत्तक़ी
नियाज़ी ने इमाम हुसैन की बारगाह में मनक़बत का नज़राना पेश किया। बाद इसके
नक़ी मियाँ नियाज़ी ने इमाम हुसैन की फज़ीलत और सीरत के बारे में बताया। वहीं
जै़न मियाँ नियाज़ी ने इमाम हुसैन की शहादत व उनके जाँनिसारों का ज़िक्र बयाँ किया
और कहा कि हमें ज़यादा से ज़्यादा इमाम हुसैन का ज़िक्र करना चाहिए। वहीं कायम
मियां नियाज़ी ने अपनी तक़रीर में कहा कि हमें इमाम हुसैन के बताये हुये रास्ते पर
चलना चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा इमाम हुसैन से मोहब्बत करनी चाहिए और उनका
ग़म मनाना चाहिए, क्योकि यह सुन्नते रसूल है। वहीं हमज़ा मियां नियाज़ी अपनी तक़रीर
में कहा कि इमाम हुसैन ने ज़िन्दग़ी भर अल्लाह की राह में अपनी ज़िन्दग़ी
गुज़ारी और शरीअत को बचाने की बात आयी तो अपने 72 जानिसारो के साथ अपने 6
माह के बेटे अली अज़्गर और अपने पूरे खानदान को अल्लाह की राह में कुर्बान कर
दिया। इस तक़रीर में ज़मन नियाज़ी ने इमाम हुसैन की शहादत और उन पर जो मुसीबतें
गुज़री और जिस तरह से उन्होंने सब्र का नमूना पेश किया उसको तफसील से बयाँ किया।
इस तक़रीरी मुकाम पर हादी नियाज़ी, अब्दुल्ला नियाज़ी, फखरी नियाज़ी, फुजै़ल मियां
नियाज़ी, इबाद नियाज़ी, औन नियाज़ी, याहया नियाज़ी, ने बारी-बारी इमाम हुसैन की
शहादत, उनका ग़म, हरे कपड़े पहनना, तख्त बनाना, इन सबके बारे में तफसील से बयां
किया। जलसे की सदारत फैज़ान-ए-नियाज़िया वेलफेयर सोसायटी के बानी डॉ0 हाजी
कमाल मियां नियाज़ी ने लोगों को खिताब करते हुए बताया कि हमें इमाम हुसैन
(अ0स0) से सच्ची मोहब्बत करनी चाहिए, तभी हमारी हर इबादत कुबूल होगी।
क्यांकि फरमाने रसूल है कि ”जो इमाम हुसैन (अ0स0) से मोहब्बत करता है वह
मुझसे मोहब्बत करता है और अल्लाह उससे मोहब्बत करता है और जो इनसे
बुग्ज़ रखता है वह मुझसे बुग्ज़ रखता है और अल्ला उससे बुग्ज़ रखता है।“
इसलिए हर मुसलमान जो कलमा पढ़ता है उसको इमाम हुसैन (अ0स0) से मोहब्बत करनी
वाजिब है, इमाम हुसैन की कुर्बानी ने यह पैग़ाम दिया है कि ज़ुल्म झूठ न
इंसाफी के आगे सर नही झुकाना चाहिए कर्बला में इमाम हुसैन ने सब्र और इंसानियत
की बेहतरीन मिसाल देकर लोगो को यह बता दिया है कि जक हक़ की बात हो तो कभी
पीछे नही हठना चाहिए चाहे हमारा सर ही क्यो न कट जाए और उन्होने कहा कि दीन
और दुनिया में कामयाब रहना चाहता है तो इमाम हुसैन के किरदार को अपनाना चाहिए
इन्होंने कौम व मुल्क के लिये दुआ की कि अल्लाह रसूल व आले रसूल के सदक़े में
इन बच्चों में इसी तरह इस्लाम की बेदारी पैदा हो। इस जलसे की निज़ामत सहाबज़ादे
खानकाहे नियाज़िया व अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के स्कूल ।ण्ठण्ज्ञण् के प्रोफेसर डॉ0
अब्बास मियां नियाज़ी ने की, जिन्होंने बच्चों की हौसला अफजाई करते हुए इमाम
हुसैन (अ0स0) की शहादत के बारे में लोगों को बताया कि उनकी शहादत से इस्लाम
को एक नई जिन्दगी मिली, जिसकी वजह से आज हमारा इस्लाम अपनी बुनियाद पर टिका हुआ । अगर इमाम हुसैन (अ0स0) कर्बला में अपनी शहादत न देते तो इस्लाम का कोई
वजूद न होता। उन्होंने इन छोटे बच्चों को इनकी तक़रीर पर शाबाशी दी।
बड़ी तादाद में लोगों ने इस जलसे में शिरकत की और इमाम हुसैन (अ0स0) व सब
शोहदाय कर्बला को याद किया और इस तक़रीर को सुनने से लोगों में बड़ा जज़बा
और जोश नज़र आया। बीच-बीच में अपने जज़बातों का इज़हार नारों के ज़रिए करते
रहे और ”या हुसैन“ के नारों से फिज़ा गूंजती रही। यह तक़रीरी प्रोग्राम देर रात
तक चलता रहा। आखिर में सोसायटी के अध्यक्ष हमज़ा मियां नियाज़ी ने नज़र पेश करके
तबर्रूक तकसीम किया।
इस प्रोग्राम में खानवादों के साथ-साथ मुरीदी, अक़ीदतमंद और
सासोयटी के सदस्यगण मौजूद रहे।
(सय्यद यावर अली नियाज़ी)