नोमहला में झण्डा फहराने के बाद जनसेवा टीम ने हिन्दुस्तान के पर्यावरण की सलामती के लिये पौधे लगाये
नोमहला में झण्डा फहराने के बाद जनसेवा टीम ने हिन्दुस्तान के पर्यावरण की सलामती के लिये पौधे लगाये और अमन का पैग़ाम देते हुए आसमान में तिरंगे गुब्बारे छोड़े,स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बाटी मिठाई,
जनसेवा टीम के अध्यक्ष पम्मी खाँ वारसी ने बताया कि 1749 में शहीदे वतन नवाब हाफ़िज़ रहमत खाँ ने बरेली में अधिकार किया तो पुनः उन्होंने नोमहला बसाया और अपने पिरोमुर्शिद सय्यद मासूम शाह को सौप दिया,1857 में नोमहला घनी आबादी का इलाका था,यहाँ बड़ी तादात में सय्यदो के परिवार बसे हुऐ थे और ये ‘नोमहल्लवी सय्यद’कहलाते थे,सय्यद मासूम शाह की औलादे ये सय्यद के परिवार क्रांतिकारियो की हर तरह से सहायता किया करते थे,शहीदे वतन नवाब खान बहादुर खान सूबेदार बख्त खान रिसालदार मोहम्मद शफ़ी और क्रांतिकारी परिषद के लगभग सभी सदस्य सादाते नोमहला यानी नोमहला के सय्यदों के यहाँ आया करते थे,अंग्रेजों के ख़िलाफ़ जो भी योजनाए तैयार की जाती,जलसे होते या अन्य क्रांतिकारी प्रोग्राम अधिकतर जुमे की नमाज़ के बाद सबकी मौजूदगी में होते थे।1857 कि असफलता के पशचात अंग्रेजी सेनाओं ने सबसे पहले नोमहला को अपने हिंसा का निशाना बनाया यहाँ बड़ी तादात में लोग मारे गये बहुत बड़े पैमाने पर खून बहा, एक एक घर वीरान हो गया था,
सय्यद इस्माईल शाह अज़ान देते हुए शहीद हुए थे,ऐसे अराजकता के वातावरण में सय्यद परिवारों की लगभग 70 से 80 महिलाओं ने अपनी स्वाभिमान की रक्षा के लिए मस्जिद के कुएं में कूदकर जान दे दी थी आज भी उनकी कब्रे नोमहला कबस्तान में मौजूद हैं, इन परिवारों के केवल चंद लोग ही बच सके और वे बहुत दिनों तक जंगल में रहे,ब्रिटिश हुकूमत के इस कहर के ख़ौफ़ और तरह तरह की कहानियों के चलते 1857 के बहुत बाद तक लोग इस इलाके से गुजरने की हिम्मत नही जुटा पाते थे,सन 1906 में जाकर यह इलाका फिर से आबाद हुआ,आज भी क्रांतिकारियों के गुरुओं की मज़ार बरेली के सिविल लाइन स्थित नोमहला में मौजूद हैं, सय्यद अहमद शाह शाह जी बाबा,उनके बेटे सय्यद मासूम शाह की मज़ार हैं जिनका खानदानी शजरा सय्यद नासिर तिमीज़ी के जरिये शहदाने कर्बला इमाम हुसैन से मिलता हैं,1906 में हज़रत नासिर मियां की दरगाह बनी तभी से नोमहला आज तक आबाद हैं और 1857 के क्रांतिकारियो की याद दिलाता हैं।
सभी लोग ने हुसैनबाग स्थित शहीदे वतन नवाब हाफ़िज़ रहमत खाँ और पुरानी जेल स्थित नवाब खान बहादुर खान के मज़ार पर पहुँचकर हाज़री देकर फूलो की चादर चढ़ाकर खिराजे अक़ीदत पेश की,
इस मौके पर पम्मी वारसी,कमाल मियां साबरी,हाजी यासीन कुरैशी, मिर्ज़ा शादाब बेग,डॉ सीताराम राजपूत,सूफी वसीम मियां साबरी,दिलशाद साबरी,शाहिद रज़ा नूरी,मो एराज,अतीक साबरी,मेराज साबरी,अफसर हुसैन,तस्लीम,आमिर उल्लाह सलीम,महमूद हुसैन आदि सहित बड़ी तादात में शामिल रहे।