आधार और सरकार जान क्यों ले रहे हैं?
सरकारी दावों के मुताबिक राज्य में साढ़े ग्यारह लाख से ज्यादा राशन कार्ड रद्द हुए हैं। जिनके पास कार्ड है, वह भी नेटवर्क न रहने से लिंक नहीं हो पा रहे हैं झारखंड में पिछले एक महीने के अंदर भूख से एक के बाद एक हुई चार मौतों की खबर ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। हालांकि सरकारी तंत्र ने पूरी तत्परता से यह दावा पेश किया है कि मौतें भूख से नहीं बल्कि बीमारी और अन्य वजहों से हुई हैं, मगर आमतौर पर उसके स्पष्टीकरण को उसकी मजबूरी के रूप में ही देखा जा रहा है। पीडि़त परिवार जिन हालात में जी रहे थे, उसमें भोजन तक उनकी पहुंच मुश्किल तो हो ही गई थी। लिहाजा, भूख के जरिए मौत तक पहुंचने से पहले अगर उन्हें भूख जन्य किसी बीमारी ने जकड़ कर पहले ही मौत तक पहुंचा दिया तो इससे यह नहीं माना जा सकता कि सरकार ने उन्हें बेहतर स्थिति में रखा था।
सिमडेगा की जिस 11 वर्षीया संतोषी देवी की मौत की खबर सबसे पहले आई थी, उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द हो चुका था। यह इकलौता परिवार नहीं था जिसका राशन कार्ड रद्द हुआ था। खुद राज्य सरकार के मुताबिक, प्रदेश में साढ़ेग्यारह लाख से ज्यादा राशन कार्ड रद्द किए गए हैं। संतोषी की मां कोयली देवी के मुताबिक जब 28 सितंबर को संतोषी की तबीयत बिगड़ी तो वह उसे वैद्य के पास ले गई। वैद्य ने कहा- इसको भूख लगी है। खाना खिला दो, ठीक हो जाएगी। लेकिन घर में राशन का एक दाना नहीं था। मां ने घर में रखी चाय पत्ती और नमक मिलाकर चाय बनाई। उसने वह चाय बच्ची को पिलाने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कुछ ही समय में बच्ची ने दम तोड़ दिया।
देवघर के रूपलाल मरांडी के घर में भी, कहते हैं, चार-पांच दिनों से अनाज का एक दाना नहीं था। गौर करने की बात है कि उसके पास राशन कार्ड था। बावजूद इसके, नेटवर्क के अभाव में बायोमेट्रिक मशीन उसके और उसके परिवार के अंगूठे की पहचान नहीं कर पाई थी। इस कारण डीलर ने उसे अनाज देने से इनकार कर दिया था। अन्य मौतें भी घोर अभाव वाली परिस्थितियों में हुई हैं।
उल्लेखनीय है कि रघुवर सरकार द्वारा आधार कार्ड के सवाल पर ऐसी अव्यवहारिक सख्ती का खामियाजा राज्य की गरीब, दलित,पीड़ित आदिवासी जनता ही भुगत रही है। इन 4 मौतों में भी मरने वाले 3 दलित और एक आदिवासी व्यक्ति था। मजबूत आर्थिक परिस्थितियों वाले जो अवैध राशनकार्डधारी थे, उनकी सेहत पर सरकार की उक्त नीति का कोई खखास असर नहीं पड़ा है। इससे संबंधित खबरें स्थानीय अखबारों में टुकड़ों में आती रही हैं कि नेटवर्क न रहने एवं आधारकार्ड से लिंक न होने के कारण अमुक गांव में उपभोक्ताओं को राशन नहीं मिल पा रहा है या यह कि फलां गांव के कई गरीब, दलित, आदिवासी परिवारों का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया है। ऐसी खबरों को प्रशासन की ओर से कोई नहीं तवज्जो नहीं दी गई, जिसे सरकार अपने सख्त रवैये का संकेत मानती रही।
सरकारी अडय़िलपन के आदेश के ही आलोक में पिछले 30 सितंबर को लातेहार के डिस्ट्रिक्ट सप्लाई ऑफिसर ने लोगों को धमकी दी थी कि अगर नवंबर तक उनका राशन कार्ड आधार से लिंक नहीं हुआ तो उनका नाम पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन लिस्ट से हटा दिया जाएगा। इस तरह के आदेश झारखंड के सभी जिलों में दिए गए हैं।
गौरतलब है कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि था सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए आधार को अनिवार्य नहीं किया जा सकता है। चूंकि इसे पलटने वाला दूसरा फैसला अभी तक नहीं आया है, इसलिए यह लागू है और देखा जाए तो राज्य सरकार द्वारा दिए गए ऐसे तमाम आदेश गैरकानूनी हैं। आधार कार्ड न होने या राशन कार्ड से लिंक न होने के आधार पर खाद्यान्न देने से इनकार करना भी कानूनन उचित नहीं कहलाएगा। संभवतया इन्हीं वजहों से सरकार इन तथ्यों से औपचारिकतौर पर इनकार कर रही है। और जो भूख से तड़प-तड़पकर मरने की स्थिति में हैं, वे राशन दुकानदारों के खिलाफ कोर्ट जाकर शिकायत करेंगे या सबूत पेश करेंगे ऐसा सोचा भी कैसे जा सकता है?