अब लालू समझ रहे अपनी मुश्किलें
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का ग्रह नक्षत्र इन दिनों कुछ ज्यादा ही खराब चल रहा है. इधर सीबीआई ने चारा घोटाले के मामलों में भी लालू प्रसाद की मुश्किलें कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी है. उच्चतम न्यायालय द्वारा इस मामले की सुनवाई नौ माह में पूरी करने के आदेश के बाद सीबीआई की तीन विशेष अदालतों में चारा घोटाले की सुनवाई रोजाना हो रही है. लालू प्रसाद चारा घोटाले के चार मामलों में आरोपी हैं और चारो मामलों की सुनवाई अलग-अलग हो रही है. लालू प्रसाद ने अपने बचाव में लगभग 70 गवाहों की सूची अदालत को उपलब्ध कराई है. लेकिन गवाहों के बयान दर्ज होने के समय उन्हें भी सशरीर हाजिर रहने के आदेश से लालू प्रसाद की परेशानियां बढ़ गई हैं. सप्ताह में तीन दिन उन्हें कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ता है. सीबीआई अदालतों की सीढिय़ां चढ़ते-उतरते लालू थक से गए हैं और उनके चेहरे पर झल्लाहट साफ दिखाई पड़ती है. अपने चुटीले अंदाज के लिए जाने जाने वाले लालू इन दिनों गुमसुम रहते हैं. उनके चेहरे की मुस्कान गायब हो गई है. मीडिया फ्रेंडली कहे जाने वाले लालू इन दिनों मीडिया से दूरी बनाए रहते हैं. काफी जोर आजमाईश के बाद ही वे मीडिया के सामने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. लालू काफी दिनों के बाद मीडिया से तब मुखातिब हुए जब नीतीश कुमार ने राजद का साथ छोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया. लालू ने नीतीश को पलटू राम कहते हुए कहा कि भाजपा नेताओं के पास नीतीश का काला चि_ा है और उसे जब भाजपा नेताओं ने उजागर करने की धमकी दी, तब आनन-फानन में नीतीश राजद का साथ छोड़ भाजपा की गोद में जा बैठे.
लालू प्रसाद को इन दिनों चारा घोटाले की सुनवाई के दौरान सप्ताह में तीन दिन वृहस्पतिवार, शुक्रवार एवं शनिवार को रांची आना पड़ता है. इन तीनों दिन लालू के गवाहों के बयान दर्ज कराए जाते हैं. गवाहों के बयान दर्ज होने के दौरान लालू प्रसाद को अदालत में सशरीर हाजिर रहने का आदेश दिया गया है. इस अदालती आदेश से लालू परेशान तो जरूर हैं, लेकिन उनके पास और कोई चारा भी नहीं बचा है. लालू ने कोर्ट से गुहार भी लगाई थी कि वे एक राजनेता हैं, उनके पास ढेरों राजनैतिक काम है. पटना में कार्यकर्ताओं कमी रैली है, लोकसभा चुनाव भी होना है. इसलिए उन्हें सशरीर हाजिर होने वाले आदेश में ढील दी जाय. वे अपने अधिवक्ता के माध्यम से अपनी हाजिरी लगाएंगे. उन्होंने यह भी अनुरोध किया था कि उन्हें पटना से आने में परेशानी होती है. लेकिन सीबीआई अदालत ने को लालू की ये दलीलें रास नहीं आई, उसने लालू की गुहार को अनदेखा कर दिया. सीबीआई अदालत ने साफ इंकार करते हुए कहा कि बचाव पक्ष की गवाही के दौरान सशरीर हाजिर होना जरूरी है, उच्चतम न्यायालय का भी यही आदेश है. अदालती आदेश का पालन करने के लिए लालू प्रसाद को हर तिथि पर गिरते-पड़ते आना ही पड़ता है. पटना में जिस दिन महागठबंधन टूटा और भारी राजनीतिक गहमागहमी थी, उसके अगले ही दिन सीबीआई अदालत में मामले की सुनवाई की तिथि निर्धारित थी. इसलिए लालू प्रसाद पटना की राजनीतिक गहमागहमी को छोड़ कर देर रात अपने चुनावी रथ से रांची के लिए रवाना हो गए. दूसरे दिन सीबीआई अदालत में लालू हाजिर हुए, तो उनके चेहरे पर झल्लाहट साफ नजर आ रही थी. लालू प्रसाद ने उसी झल्लाहट में सीबीआई के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह की अदालत में यह कहा कि इस न्यायालय से हमें न्याय की आशा नहीं है. लालू ने अदालत बदलने की अपील भी की. उन्होंने कहा कि मैंने अदालत बदलने के लिए उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर किया है. मैं अनुरोध करूंगा कि उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद ही इस अदालत में मामले की सुनवाई की जाय. लेकिन सीबीआई अदालत ने लालू की इस दलील को सीरे से खारिज कर दिया. सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह ने कहा कि गवाह अपना बयान दर्ज कराने को अदालत आए हैं, तो बयान दर्ज किया जाएगा.
लालू प्रसाद को इन दिनों चारा घोटाले की सुनवाई के दौरान सप्ताह में तीन दिन वृहस्पतिवार, शुक्रवार एवं शनिवार को रांची आना पड़ता है. इन तीनों दिन लालू के गवाहों के बयान दर्ज कराए जाते हैं. गवाहों के बयान दर्ज होने के दौरान लालू प्रसाद को अदालत में सशरीर हाजिर रहने का आदेश दिया गया है. इस अदालती आदेश से लालू परेशान तो जरूर हैं, लेकिन उनके पास और कोई चारा भी नहीं बचा है. लालू ने कोर्ट से गुहार भी लगाई थी कि वे एक राजनेता हैं, उनके पास ढेरों राजनैतिक काम है. पटना में कार्यकर्ताओं कमी रैली है, लोकसभा चुनाव भी होना है.
गवाही के दौरान मामले ने एक अलग तूल पकड़ लिया, जब सुनील कुमार निर्धारित तिथि से पहले ही गवाही देने पहुंच गए. लालू प्रसाद के बचाव में पटना के तत्कालीन वरीय आरक्षी अधीक्षक सुनील कुमार की गवाही की तिथि 10 अगस्त निर्धारित थी. लेकिन वे 3 अगस्त को ही गवाह देने पहुंच गए. जब उनका बयान दर्ज हो रहा था, तभी विशेष न्यायाधीश शिवपाल सिंह को इस बारे में पता चल गया. इस बात पर विशेष न्यायाधीश ने उन्हें फटकार लगाते हुए गवाही वाले कागजात को फाड़ डाला. इसके बाद लालू प्रसाद ने अदालत के बाहर इसे मुद्दा बनाना चाहा, लेकिन मीडिया का समर्थन नहीं मिलने के कारण यह मुद्दा नहीं उछल पाया. दरअसल सुनील कुमार अनुसूचित जाति के हैं और विशेष न्यायाधीश द्वारा किए गए व्यवहार से परेशान नजर आ रहे हैं. अब उन्हें भी ये डर सताने लगा है कि कहीं वे भी चारा घोटाले में न फंस जाएं. यूपीए के शासनकाल में जब लालू प्रसाद के खिलाफ चारा घोटाला मामले में केस दर्ज हुआ, तो उस समय चारा घोटाले से जुड़े सभी मामलों को एक ही मानकर केस दायर किया गया था. उस मामले में सुनवाई भी पूरी हो चुकी थी. सीबीआई ने कुछ मामलों में लालू प्रसाद को क्लीन चिट भी दे दी थी. लेकिन उच्चतम न्यायालय के फैसले ने लालू प्रसाद को नई परेशानी में डाल दिया. दरअसल, उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी कि चारा घोटाले के सभी मामलों की अलग-अलग सुनवाई हो. इस याचिका पर फैसला सुनाते हुए उच्चतम न्यायालय ने सभी मामलों की अलग-अलग सुनवाई का आदेश दे दिया. यही नहीं, न्यायालय ने ये भी आदेश दिया कि पूरे मामले की सुनवाई नौ माह के भीतर होनी चाहिए. लालू प्रसाद के लिए सबसे बड़ी परेशानी की बात ये थी कि अदालत ने उन्हें गवाहों के बयान दर्ज होते समय सशरीर हाजिर होने का आदेश दिया.
भाजपा पर छवि खराब करने का आरोप
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद भाजपा नेताओं पर खुलकर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि मोदी एंड पार्टी ने मेरी राजनीतिक छवि खराब करने के लिए सीबीआई को अपना हथियार बना लिया है और साजिश के तहत मुझे फंसाने का काम किया जा रहा है. जब सीबीआई ने आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में क्लीन चिट दे दी, फिर मुझे चारा घोटाले में इसलिए फंसाया जा रहा है क्योंकि मैं मोदी के खिलाफ सभी दलों को गोलबंद करने का काम कर रहा हूं. लालू प्रसाद चारा घोटाले की चर्चा करते हुए कहते हैं कि ‘अगर मेरे पास चारा घोटाले का पैसा रहता, तो सीबीआई उसे जरूर बरामद करती. चारा घोटालेबाजों से मैं मिला भी नहीं, तो मेरे पास अवैध धन कहां से आएगा. अगर मेरे पास अवैध धन रहता, तो वो इतनी छापेमारी में सीबीआई को जरूर मिलता.’ लालू प्रसाद कहते हैं, ‘मेरा दोष सिर्फ इतना है कि मैंने पशुपालन विभाग के एक अधिकारी को सेवा विस्तार दिया था, वह भी पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा के कहने पर. जगन्नाथ मिश्रा ने अनुशंसा करते हुए लिखा था कि अगर इस अधिकारी को सेवा विस्तार नहीं दिया गया, तो पशुपालन विभाग डूब जाएगा, पूरा काम ठप्प हो जाएगा. इसे देखते हुए एक साल के लिए सेवा विस्तार दिया गया. यही मेरा दोष है, लेकिन मुझे इस तरह फंसा दिया गया है कि मैं कितना बड़ा अपराधी हूं.’
लालू प्रसाद पर सीबीआई ने डोरंडा कोषागार से साढ़े तीन करोड़, चाईबासा कोषागार से साढ़े पैंतीस करोड़, देवघर कोषागार से 90 लाख एवं 2 करोड़ की अवैध निकासी के मामले में प्राथमिकी दर्ज कर रखी है. इन मामलों में लालू प्रसाद पर सीबीआई ने आरोप तय करते हुए यह कहा है कि सीएम रहते हुए लालू प्रसाद ने घोटालेबाजों को छूट दे रखी थी और उनकी जानकारी में ये अवैध निकासी हुईं. सीबीआई का कहना है कि लालू प्रसाद ने चारा घोटाले के किंग पिन माने जाने वाले श्यामबिहारी सिन्हा के साथ मिल कर एक हजार करोड़ से भी अधिक का घोटाला किया. लेकिन लालू इन तथ्यों से भी पूरी तरह से इंकार करते हैं. वे कहते हैं, ‘जैसे ही मुझे पशुपालन विभाग में अवैध निकासी होने की जानकारी मिली, मैंने तत्कालीन चीफ सचिव बी.एस. दुबे को निर्देश दिया कि वे पूरे तथ्यों से अवगत कराएं. इस मामले में निगरानी की भी जांच कराई गई, पर निगरानी ने कहा कि जांच से यह पता चलता है कि इस तरह की कोई अवैध निकासी नहीं हुई है. उसके बाद इस जांच की फाईल बंद की गई. इस मामले में सीबीआई जांच की अनुशंसा भी मैंने की थी, लेकिन सीबीआई ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया. अगर मैं इस मामले में आरोपी रहता, तो मैं जांच का आदेश क्यों देता.’ एक राजनीतिक साजिश के तहत भाजपाईयों ने मुझे ही फंसा दिया. अब देखना है कि इस मामले में अदालत का फैसला क्या आता है. वैसे चारा घोटाले में आरोपी होने के कारण लालू यादव पर चुनाव लडऩे की पाबंदी है.