बरेली का एक क़दीम मज़ार पीर बियावानी शाह मियां (रह०अ०)
बरेली ज़िले की पूरब-दक्षिण दिशा में स्थित केंट इलाके से मिला हुआ ये मुग़लिया दौर का मज़ार है।
पीर बियावानी शाह मियां का पूरा नाम सैयद उस्मान अल हैदर बारहा था । आप के वालिद सैयद अमानउल्लाह बारह और दादा सैयद जलालुद्दीन लाड़ मुग़ल बादशाह अकबर के मनसबदार थे। जिनको बादशाह अकबर ने पांच परगनो के 484 गांव की जागीर दी थी । अबुल फ़ज़ल ने भी अपनी मशहूर किताब आईने अकबरी में सैयद लाड बारह के हवाले से लिखा है।यही वजहा है कि आज के ज़िला बरेली, रामपूर , बदायूं , पीलीभीत, शाहजहांपुर में सैयद लाड बारहा के नाम से आज भी कई गांव आबाद हैं। सैयद उस्मान अल हैदर बारहा का सिलसिला ए नस्ब इमाम जैनुलाअबदीन अ०स० से जाकर मिलता है। इनकी रसाई मुग़ल बादशाह जहांगीर के दरबार में थी और बादशाह ने खुद इनको कई बार दिल्ली दरबार में इनके वालिद के मनसब को देने की पेशकश की और इनके अज़ीज़ सैयद शम्स बारह से इनको दिल्ली दरबार में लाने की सिफारिश भी की । लेकिन अपनी फ़कीराना तबियत के चलते इन्होंने बादशाह से ये कहकर इंकार कर दिया के रब्बे करीम मुझसे कुछ और ही काम लेना चाहता है।

इनका ज़्यादातर वक्त इबादतें इलाही में और लोगों की इमदाद में गुजरता था। अल्लाह ने पंजेतन पाक के सदके में इनको कई कमालात अता किये थे। इनकी दुआओ से बहुत लोगों को अल्लाह ने मालों औलाद से नवाजा ।बरेली
व दूर दराज़ के लोग इनसे बढ़ी अकीदत रखते थे । इनके कमालात को देखकर बरेली जिले के एक रईस “समद चौधरी”जो इनके बड़े मानने वाले थे इन्हीं के हाथों इस्लाम लाए थे।

जहां तक तक इनकी शहादत का सवाल है तो एक बार ये समद चौधरी की गढ़ी से वापस पालकी में लौट रहे थे और इनके सौतेले भाई जिनको इनके दुश्मनों ने बहका दिया था इनके साथ थे जो उस वक़्त हाथी पर सवार थे उन्होंने इस बियाबान इलाके में इनको पाल
आवाज़ दी और जैसे ही इन्होने पालकी से बाहर अपना सर बाहर निकाला इनके सर पर तलवार से वार करके कत्ल कर दिया। उस बियाबान जंगल में दफ्न होने की वजह से इनको पीर बियाबानी शाह मियां रह०अ० कहा जाता है।
इनका मज़ार उसी जगह पर सबसे पहले समद चौधरी ने बनाया था लेकिन वो गिर गया। फिर इनके बेटे सैयद फैजुल्लाह ने मजार की दोबारा तामीर कराई और साथ ही एक मस्जिद व मज़ार के साथ ही एक तालाब भी आवाम की खिदमत के लिए खुदवाया , पर ये मज़ार एक खतरनाक ज़लज़ले की ज़द में एक बार फिर गिर गया।

इसके बाद इन्हीं की औलाद में से सैयद साबिर अली उर्फ फैजुल्लाह सानी जो मिर्जा मुअज्जम शाह के मंसबदार थे ,ने इस मज़ार को उन्हीं आसार पर फिर बनवाया भी लेकिन आसिफुद्दौला के दौर में एक ऐसा खतरनाक ज़लज़ला बरेली में आया था कि जिसमें बरेली की बहुत सी पुरानी इमारतें गिर गयी और यह इतना सख्त ज़लज़ला था कि किताबों में दर्ज है कि तालाबों का पानी बाहर निकल गया था उसी दौरान ये मज़ार भी एक बार फिर शहीद हो गया। सैयद उस्मान अल हैदर बारहा के एक बेटा सैयद फैजुल्लाह व एक बेटी सैय्यदा सकीना थी।इनकी नस्ल क़स्बा सेथल में ज़ैदी उल वास्ती सादात के नाम से आबाद है ।
(ये तमाम वाक़यात तारीखी कुतुब, क़लमी नुस्खे, नस्बनामो और रोज़नामचो में दर्ज तफ्सील के मुताबिक लिखे हैं)
शाह उर्फ़ी की क़लम से !
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !