बरेली का एक क़दीम मज़ार हज़रत शहदाना वली साहब (रह० अलै०)
बरेली की सरज़मीं की सूफियाना फिज़ाओं से सारा आलम महकता है । इसी शहर में एक क़दीम दरगाह शहदाना वली साहब की मशहूर है। काफ़ी तहक़ीकात के बाद इनके बारे में कुछ जानकारी हासिल हुई । हालांकि इनकी शख्सियत को लेकर तारीखी एतबार से काफी इख्तेलाफ मिलता है और इनके सिलसिले में गिरोह ए अव्वल का दावा ये है कि 612 हि० में शहर ए बुखारा में सैयद शाहदाना वली साहब की पैदाइश हुई । आपका पूरा नाम सैयद जलालुद्दीन था ।आपने इब्तिदा में तमाम उलूम पर दस्तरस हासिल कर ली ।बचपन से ही आपका मिजाज फ़कीराना था। एक अंग्रेजी इतिहासकार एच० मिलफोरड ने अपनी किताब “इण्डियन इस्लाम” में उस वक्त के मशहूर सूफ़ी हज़रत बदीउद्दीन अहमद उर्फ अहमद जिन्दान जो कि हज़रत तैफूर बायजिद वुस्तामी के शागिर्द थे का तफ्सीली तज़किरा किया है और इन्हीं हज़रत बदीउद्दीन अहमद ने सैयद जलालुद्दीन को शाहदाना का लक़ब दिया था वा शाहदाना वली साहब इन्हीं के खलीफा थे और इनके हुक्म से हिन्दोस्तान आये थे।
तारीख़ की कई किताबों के हवालों से जैसे मौलाना अमीर हसन साहब की तस्नीफ सबी ए तरायक़ (सफा नं० 193), मौहम्मद हामिद हंसी बहराइच की तस्नीफ वकियाते पीर सै० मौहम्मद हनीफ(सफानं०23),पीर अब्दुल निसार बल्खी शाहिद निजामी की तस्नीफ सिलसिला ए मदारिया (सफा नं०94 ), अल्लामा वाईज़ काशिफी की तस्नीफ तारीख़ ए बदीद(सफा नं०53), सैय्यद इक़बाल अहमद जौनपुरी की तस्नीफ तारीख़ ए सलातीन ए शर्की और सूफिया ए जौनपुर ( सफा नं०94) देखा जाए तो सैयद जलालुद्दीन शाहदाना वली साहब सुल्तान मुहम्मद तुगलक के दौर में अफगानिस्तान ओ सिंध होते हुए हिन्दुस्तान तशरीफ़ लाए । जहां जहां भी आपने दीने इस्लाम के मौहब्बत के पैगाम को फैलाया वहां वहां तारीख़ में दर्ज हैं । खुसूसन अफगानिस्तान से लेकर हिन्दोस्तान तक इनके नाम से “चिल्ले” मनसूबे हैं जिनमें ग्वालियर का चिल्ला काफी मशहूर है। इन्हीं कुतुब ए तारीख़ के हवालो से शाहदाना वली साहब की तारीख वफ़ात 4 रबीउल अव्वल 731 हिजरी यानी 16 दिसम्बर 1331ई० बनती है।
एक दूसरी रिवायत के मुताबिक जिला अमरोहा के सैय्यद खुर्शीद मुस्तफा रिज़वी साहब ने 1970-71 में लिखी अपनी किताब “तज़किरा ए शाह अब्बन बदर चिश्ती” में शाहदाना वली साहब के हवाले से लिखा है कि आप हज़रत अब्बन चिश्ती र०अ० के शागिर्द और खलीफा थे।
इसी के साथ इनके सिलसिले में ये मशहूर है कि आपका खानदान मौहम्मद बिन कासिम के दौर में हिंदोस्तान आया और आपने बरेली के गवर्नर ऐनुल मुल्क शीराजी व अरब बहादुर नयाबत ख़ान के वक्त शहंशाह अकबर के दौर में उसके दीने इलाई के खिलाफ जंग का परचम बुलन्द किया और इसी जंग में शहीद हुए। लेकिन ये रिवायत दुरुस्त नहीं मालूम होती है क्योंकि अकबर के दौर का मशहूर लेखक मुल्ला अब्दुल कादिर बदायुनी बदायूं में बैठकर मुन्तखबुत तावारीख
लिख रहा हो और इस अहम वाक्य को नक़ल न करें जबकि वो खुद अकबर के दीने इलाही के खिलाफ था ।
शहीदाना वली साहब के मजार को मकरंद राय नाजिम बरेली ने तामीर करवाया था।
शाह उर्फ़ी की क़लम से !
बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !