एक समग्र व्यक्तित्व निर्भय सक्सेना- दिलीप कुमार गुप्ता
सागर की गहराई मापनी मुश्किल है उसी प्रकार इंसार के ज्ञान की थाह पाना भी आसान नहीं। एक ऐसे ही अपने अंदर अनेकों जानकारियां को समेटे श्री निर्भय सक्सेना जी मेरे सामने हैं। मैं इन्हें चलता-फिरता पुस्तकालय भी कह सकता हूं। श्री निर्भय सक्सेना जी कई दैनिक समाचार पत्रों में कार्यरत रहे। कई जगहों के अनुभव से अपनी जानकारी बढ़ाते रहे और ऐसा की पाठकों तक कुछ नया पहुंचे। उनका एक लेख बाजार के माल-भाव पर था जिससे लोगों तक यह जानकारी पहुंचे कि कहीं ग्राहक दुकानदार की मनमानी का शिकार तो नहीं हो रहा है। उस समय स्टील के बर्तन चटक जाते थे। श्री निर्भय सक्सेना के लेख से लोगों में यह जागरूकता फैली कि लोग दुकानदार से कहने लगे भइया चटकने वाला स्टील का बर्तन मत देना। श्री निर्भय सक्सेना साफ-सुथरे व्यक्तित्व के धनी हैं। वह पुराने टाइप के टू व्हीलर से अब भी शहर नापते नजर आते हैं। कुछ बड़ी दाढ़ी उनकी पहचान है। जमाने के छलकपट से दूर हैं। उनका एक लेख मैं टाइप कर रहा था जिसमें उन्होंने पूर्व कुछ प्रधानमंत्रियों के साथ भी कुछ पल चाय की चुस्कियों के साथ बिताये हैं। अनेकों राजनीति की जानी-मानी हस्तियों से इंटरव्यू लिये हैं और अपने प्रखर सवालों से श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी जी को भी नहीं बख्शा। अपनी बातों से वह मौके पर खुलते ही चले जाते हैं। कह रहे थे मुख्यमंत्री एन. डी. तिवारी बरेली स्टेट प्लेन से त्रिशूल हवाई अड्डे बरेली पर आये थेऔर चेंज कर हेलीकॉप्टर से उन्हें अल्मोड़ा जाना था । मुख्यमंत्री तिवारी जी हेलीकॉप्टर से निर्भय सक्सेना को अल्मोड़ा ले जाना चाहते थे। पर निर्भय जी ने कहा कि उन्हें आज लखनऊ जाना था। जिस पर मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी अपने पायलट शेखर जी को बुलाकर उन्हें स्टेट प्लेन से लखनऊ भिजवाया। और प्लेन की ओर बढ़ने पर निर्भय जी की चप्पल भी रास्ते में टूट गयी। वह इसी अवस्था में लखनऊ गए। तो क्या आप ऐसी शख्सियत को छोटा-मोटा समझते हैं।
उनका एक लेख दैनिक दिव्य प्रकाश के संपादक रहे जे. बी. सुमन पर था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री शास्त्री जी से मिले। शास्त्री जी तो वैसे ही सादगी की मिसाल थे उनसे जो सहजता से बातें हुई उससे जे. बी. सुमन जैसी मामूली शख्सियत भी आम से खास हो गयी। बाद में उन्हें श्री शास्त्री जी के साथ एक फोटो भी मिला। श्री जे. बी. सुमन का हाल ही में निधन हुआ है। लेकिन उनके प्रेमनगर में उनके माता-पिता को स्मरण कराता हुआ ब्रज कुंदन मार्ग, बरेली का लगा पत्थर आज भी उनकी स्मृतियों को ताजा कर देता है। तो यह था एक आम को खास बनने का सफर। अपने पिता सुरेश चंद सक्सेना जीके बारे में बह बताते हैं वह श्रमिकों की समस्याओं से व्यथित थे। उन्होंने अपने स्तर पर आंदोलन करके फैक्ट्री के प्रबंधतंत्र को झुकने पर मजबूर कर दिया। एक अखबार जो लोगों की समस्याओं को प्रकाश में लाता है। अनेक बड़ी शख्सियतों को अर्श से फर्श पर ला देता है। श्री निर्भय सक्सेना किसी दैनिक पेपर में कार्यरत थे। तब प्रबंधतंत्र से कुछ मनमुटाव के चलते उन्हें निकाल दिया गया। उनके साथ वहां कुछ लोगों को भी छंटनी का शिकार होना पड़ा। तब निर्भय सक्सेना की पहल से वह सब बहाल हो गये। जो लोगों की समस्याओं को प्रकाश में लाये उसका काला सच यही की वहां कार्यरत लोग ही प्रबंधतंत्र की मनमानी के शिकार हो जाये।
अपने एक लेख में उन्होंने बरेली के कायस्थ समाज की चुनी हुई शख्सियों पर प्रकाश डाला है। आज कुछ इसी विरादरी के लोग अपना व्यसाय करके दूसरों की भी परिवार की रोजी-रोटी के खैवनहार बने हुए हैं। सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ऐसी ही शख्सियत से जुड़े हैं। कायस्थ समाज के होते हुए भी उन्हें दूसरे की नौकरी करना ईमान को गंवारा नहीं लगा। अव वह अपनी सुशांति प्रिटिंग प्रेस और भारतीय पत्रकारिता संस्थान कार्यालय सफलतापूर्वक चला रहे हैं।
श्री बीनू सिन्हा समाज के मसीहा के रूप में भी प्रतिस्थापित है। हजारों गरीब कन्याओं की शादी में सहयोग करा चुके हैं। गरीब छात्रों को बेहतर शिक्षा मिले इसका भी बंदौवस्त करते हैं। स्वयं का रोजगार जमाने में और भी कायस्थ बंधु हैं। प्रशांत सुमन दैनिक दिव्य प्रकाश का संचालन कर रहे हैं। श्री बी पी सक्सेना कायस्थ रश्मि पत्रिका का संचालन कर रहे हैं। राकेश सक्सेना, अनूप सक्सेना की पीलीभीत रोड पर फर्नीचर की दुकान है। शहर में मनोहर भूषण और के डी इ एम इंटर कालेज की स्थापना में भी कायस्थ बधुओं का योगदान है।
बरेली की पत्र-पत्रिकाओं का अतीत से लेकर वर्तमान तक उन्होंने सविस्तार खाका खींचा है। ‘कलम बरेली की’ पुस्तक में समाचार पत्र कब शुरू हुये, कब बंद हुये इसका विस्तार से प्रकाश डाला है। उनके संपादक कौन थे इसकी भी उनको मुक्ममल जानकारी है। कहीं-कहीं वह इमोश्नल भी हो जाते हैं। पत्नी के भाई की अल्पायु में दर्दनाक मौत का उन्होंने सजीव वर्णन किया है कि मंहगा इलाज कराकर भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। घूमना- फिरना थोड़ा मूड में परिवर्तन लाता है। श्री निर्भय सक्सेना सपरिवार जम्मू कश्मीर, पंजाब, आंध्र प्रदेश, कलकत्ता, उड़ीसा के कुछ ऐसे धार्मिक स्थलों का चित्रण भी किया है जहां दर्शन मात्र से इंसान की मुराद पूरी होती है। उनके कई लेख ‘विविध संवाद’ में निरंकार देव सेवक, किशन सरोज, वसीम बरेलवी पर मैंने टाइप किये हैं। और कहीं तो वह उनके ऊपर एक विशेषांक का भी प्रकाशन हो चुका हैं।
आजकल वह ‘कलम बरेली की’ पार्ट 2 के विशेषांक की तैयारी में जी-जान से जुटे हैं। नियमित रूप से इस विशेषांक के लिए सामग्री जुटाना, सहयोग की व्यवस्था करना इसकी कमान भी वहीं संभाले हैं। अपनी व्यथा को वह कुछ इस तरह बयां कर रहे हैं ‘जब ये जिस्म थककर चूर हुआ होगा मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा; कुमार दुष्यंत का शेर इसके माध्यम से शायर यही कहना चाहता है खुदा की इवादत से अच्छा है कर्म करो। जब तक जीवन है चलते रहे।
दिलीप गुप्ता, बरेली