माल्टा के शाही परिवार के सदस्य जनाब क्लेमेंट डी पैरो के साथ एक तारीखी मुलाक़ात।

माल्टा के शाही परिवार के 9वें बैरन आफ बुडाक व 9वें मार्केस डी पैरो, जनाब निकोलस के उत्तराधिकारी और पुत्र मिस्टर क्लेमेंट के साथ उन्नीसवीं शताब्दी के मशहूर ऐतिहासिक कैफे कॉरिडोना में एक खास मुलाक़ात हुई। इस मुलाकात में मेरे साथ मिस्टर क्लेमेंट डी पैरो और प्रिंस ऑफ रॉयल हेरिटेज ट्रैवल टोरे गुलब्रांडसन अपने दोस्त मिस्टर सैम एरिक भी इस तारीख़साज़ बैठक में शामिल हुए। एक-दूसरे से परिचय कराने के बाद, मैंने इस कुलीन माल्टी परिवार की वंशावली और उनके इतिहास के बारे में सवाल पूछना शुरू किया.. मिस्टर क्लेमेंट ने मुझे बताया कि उनके परिवार का ताल्लुक यूनान के रोड्स नाम की जगह से है। यूनान का नाम आते ही मैंने उसके साथ यूनानी भाषा (ग्रीक )बोलना शुरू कर दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह यूनानी भाषा नहीं जानते थे। उन्होंने मुझे अपने पूर्वजों के इतिहास के बारे में जानकारी इस तरह दी कि उनके एक पूर्वज को 11 जून 1590 ई० में रोम का पैट्रिशियन बनाया गया था।
1716 ई० में बरोन डि बुडैक (बुडाको) की उपाधि मिली ।
1727 ई० में मोस्ट इलस्ट्रियस एंड नोबल की उपाधि मिली
1742 ई० में स्पेन में मार्केस डी पिरो की उपाधि मिली ।
इसी के साथ स्पेन के राजा फिलिप द्वारा डी पैरो परिवार को माल्टा में स्पेनिश क्राउन के नए वाणिज्यिक प्रतिनिधि तौर पर नियुक्त किया गया। उनके साथ बातचीत के दौरान, मैं अपनी डायरी में अंग्रेजी, उर्दू और हिंदी, भाषा का उपयोग करते हुए मुख्य बिंदुओं को नोट कर रहा था। मेरी डायरी देखने पर उन्होंने मुझसे हिंदी और उर्दू भाषा के बारे में सवाल किया। तो मैंने उन्हे संक्षेप में इन दोनों भाषाओं के बारे में जानकारी दी। उनका दूसरा प्रश्न मेरी वंशावली के बारे में था, जैसे मैं किस वंश से ताल्लुक रखता हूँ। इस पर मैंने उनसे कहा कि मैं एक भारतीय अरब हूं और मेरे पूर्वज मदीना से इराक के एक शहर वास्ता से होते हुए भारत आए थे और यहीं आबाद हो गये। जिनको उनकी बहादुरी के एवज़ एक जागीर मिली।
मेरी इस बातचीत के बीच, उन्होंने एक सवाल किया कि आपकी वंशावली या कबीले का ताल्लुक सऊदी अरब या दुबई के शाही परिवार से है? तो मैंने उन्हें बताया कि नहीं वे क़बीलाई पहचान के अनुसार बद्दू कहलाते हैं जिनको तुर्की के खिलाफ प्रथम विश्व युद्ध में पहचान मिली और तेल की पैदावार ने उनके रहन-सहन में चार चांद लगा दिए, लेकिन मैं पैगंबर मुहम्मद साहब के वंशज के तौर पर बनी हाशिम कबीले से ताल्लुक रखता हूं।अरब के समाजिक परिवेश में भले ही क़बीलाई सोच हावी हो लेकिन इस्लाम सबको बराबरी से देखता है। हाल ही में, पोप ने जिन ग्रैंड अयातुल्ला सैय्यद अली अल-हुसैनी अल-सिस्तानी से मिलने के लिए इराक का दौरा किया था, वो भी पैगंबर मुहम्मद साहब के वंशज हैं और इस्लामी जगत में ये लोग सैयद कहलाते हैं। इसके बाद मैंने उन्हें सेथल की जागीरदाराना तारीख़ के बारे में जानकारी दी । फिर उन्होंने मेरे पूर्वज नवाब गालिब अली साहब के1857 ई. के ग़दर में उनके योगदान के बारे में मुझसे जानकारी हासिल की और विशेष रूप से “नवाब” की उपाधि के बारे में पूछा (“नवाब” की उपाधि मुगल सम्राट मुअज्जम शाह द्वारा मेरे पूर्वज सैयद साबिर अली उर्फ ​​फैजुल्लाह सानी को जंगे जाजूज़न के दौरान दी गयी थी , जिसको 1857 ई. के विद्रोह में नवाब गालिब अली साहब की बगावत के चलते अंग्रेजी हुकूमत ने खत्म कर दिया था)। इस बातचीत के दौरान, नॉर्वे के प्रिंस ऑफ रॉयल हेरिटेज ट्रैवल मिस्टर टोरे गुलब्रांडसन और उनके दोस्त सैम एरिक ने उनसे कई सवाल पूछे, जिनका जवाब मिस्टर क्लेमेंट डी पिरो ने बड़ी नम्रता से दिया। इसी दौरान मेरी बातचीत से प्रभावित होकर उन्होंने मुझे एक किताब भी भेंट की। हमारी इस तारीखी मुलाकात में कॉफी के जीवंत रंगों का एक खास योगदान रहा ।

सेंथल से शाह उर्फ़ी रज़ा ज़ैदी की क़लम से !

 

 

 

बरेली से मोहम्मद शीराज़ ख़ान की रिपोर्ट !

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