मातृ दिवस पर एक रचना
माँ ममता की मूर्ति है,
वात्सल्य भंडार।
इसके आंचल में बसे,
पावन प्रेम दुलार।।
सहनशीलता धरा सम,
अनुपम इसका त्याग।
सलिला है संस्कार की,
माँ है ज्ञान चिराग।।
माँ की है महिमा अनत,
अमिट है इसका प्यार।
लव कुश की सिय बन गई,
वन में पालनहार।।
है इसके आशीष में,
अद्भुत शक्ति अपार।
व्यर्थ ना जाए यह कभी,
महिमा अपरम्पार।।
सृष्टि की अनुपम कृति,
सकल गुणों की खान।
अपनी संतति के लिए,
माँ अमोघ वरदान।।
सुर मुनि किन्नर नाग सब,
भजन करैं तजि गेह।
फिर भी वे नहीं पा सकें,
शबरी के सम नेह।।
सीता का प्रतिबिम्ब है,
दुर्गा का यह स्वरुप।
फूलों सी कोमल कभी,
कभी चण्डी का रुप।।
सावित्री सम धैर्य है,
दृढ़ता सती समान।
गार्गी जैसी विद्वता,
पावन सिया समान।।
श्रद्धा से हम कर रहे,
तेरा वन्दन आज।
हम सब तेरे हैं ऋणी,
नतमस्तक है समाज।।
आओ सब मिलकर करें,
माँ को आज प्रणाम।
सकल तीर्थ माँ में निहित,
माँ गंगोत्री धाम।।
सुरेश बाबू मिश्रा
साहित्य भूषण
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बरेली से निर्भय सक्सेना की रिपोर्ट !