आखिर लोग सोमवार से क्यों करते हैं नफरत ?
सोमवार यानि की हफ्ते का पहला दिन , लेकिन क्या आपको पता है कि आमतौर पर लोगों को सोमवार से नफरत होती है। जबकि शुक्रवार को याद करते हुए खुश होते हैं ।यही नही हमें अपने आस-पास ये जुमला भी सुनने को ही मिल ही जाता है – ‘थैंक गॉड इट्स फ्राइडे’ (Thank God It’s Friday)
शुक्रवार आमतौर पर हफ़्ते का आख़िरी वर्किंग डे होता है. इसके बाद लोगों को वीकेंड की छुट्टियां मिलती हैं. वो दफ़्तर के तनाव से दूर, परिवार या दोस्तों के साथ वक़्त बिताते हैं. मौज-मस्ती करते हैं। इसीलिए हफ़्ते के आख़िरी दिन का लोगों को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। शुक्रवार के दिन वो अच्छा महसूस करते हैं। उन्हें वीकेंड पर मिलने वाली राहत को लेकर उत्साह रहता है। इसके उलट, सोमवार के दिन को लोग नापसंद करते हैं।
लोग ये कहते सुने जाते हैं…
लो, फिर से सोमवार आ गया
काश! सोमवार का दिन ही न होता
इन जुमलों को सुनकर ऐसा लगता है कि सोमवार का दिन हफ़्ते का सबसे ख़राब दिन होता है। चलिए अब हम आपको बताते है कि क्या वाक़ई लोग सोमवार के दिन से बहुत ज्यादा नफ़रत करते हैं? क्या किसी ने इस पर भी रिसर्च की है । तो हम कहेंगे, जी हां दुनिया भर में हुए तमाम रिसर्च ये बताते हैं कि लोग सोमवार के दिन को बेहद नापसंद करते हैं ।क्योंकि 2 दिन के वीक-एंड के बाद फिर से काम पर जाना होता है ।इसीलिए जिससे भी पूछिए वो सोमवार को ज़िंदगी से मिटा देना चाहता है।जबकि, मनोवैज्ञानिकों को लगता है कि ये बात हक़ीक़त से बिल्कुल अलग है। असल में लोग, सोमवार के आने से पहले और इसके गुज़र जाने के बाद अलग-अलग राय रखते हैं।
मनोवैज्ञानिकों ने कुछ लोगों से सोमवार से पहले सवाल किया। तो ज़्यादातर लोगों ने ये आशंका जताई कि सोमवार का दिन बहुत बुरा होने वाला है। दफ़्तर में जाने पर काम के बोझ से साबक़ा पडेगा। किसी को कारोबार के लिए जाना है, तो सामने की चुनौतियां नज़र आईं।कुल मिलाकर शनिवार और रविवार के दिन, लोग आने वाले सोमवार को लेकर ज़्यादा नेगेटिव और निराश दिखे। उन्हें सोमवार के बुरा रहने की ज़्यादा आशंका थी।
मगर आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि जब उन्हीं लोगों से सोमवार बीत जाने के बाद बात की गई, तो उनका जवाब अपने ही पहले की बात के उलट था। लोगों ने कहा कि सोमवार उतना बुरा नहीं था। दिन ठीक-ठाक गुज़रा। कई बार तो सोमवार को ही लोगों का मूड, पहले से बेहतर दिखा।
मनोवैज्ञानिक ने रिसर्च में पाया कि असल में हम अपने तजुर्बों को ठीक उसी तरह बाद में नहीं महसूस करते,जैसा उस वक़्त होता है. यानी अगर कोई दिन बहुत बुरा गुज़रा, तो कुछ दिन बाद शायद ये लगे कि इतना भी बुरा नहीं था। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिस पल में हम जी रहे होते हैं, उसे बाद में याद करते हैं, तो ठीक वैसे ही नहीं याद करते, जैसा हमने उस पल में महसूस किया था। यही वजह है कि आने वाले वक़्त को लेकर हमारे अपने अनुमान ग़लत साबित होते हैं। सोमवार को बहुत बुरा होने वाला है, सोचते हैं. पर इतना बुरा दिन बीतता नहीं।
वहीं,वीकेंड को लेकर जो उत्साह होता है, वो वीकेंड गुज़र जाने के बाद ठंडा पड़ जाता है। ज़िंदगी के तमाम तजुर्बों को जिस वक़्त हम जी रहे होते हैं, उस वक़्त उनका एहसास अलग होता है। वहीं, जब वो दौर गुज़र जाता है, तो उसे लेकर हमारे ख़्याल बदल जाते हैं।
ऐसा सिर्फ़ सोमवार को लेकर ही नहीं है. वीकेंड को लेकर भी होता है. बहुत से लोग वीकेंड बीतने के बाद कहते हैं कि ठीक ही था. कुछ ख़ास नहीं. उनमे वो उत्साह नहीं दिखता बल्कि जो शुक्रवार को वीकेंड की उम्मीद बांधते वक़्त जोश होत है वो दिन के गुजर जाने के बाद नहीं रहत है ।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जिस पल में हम जी रहे होते हैं, उसे बाद में याद करते हैं, तो ठीक वैसे ही नहीं याद करते, जैसा हमने उस पल में महसूस किया था । यही वजह है कि आने वाले वक़्त को लेकर हमारे अपने अनुमान ग़लत साबित होते हैं. सोमवार को बहुत बुरा होने वाला है, सोचते हैं। पर इतना बुरा दिन बीतता नहीं।
तो इसका नतीजा ये निकलता है कि आप जितना सोचते हैं, सोमवार उतना बुरा नहीं होता, और आप सोमवार के दिन से उतनी नफ़रत असल में करते नहीं हैं, जितना सोचते हैं।