15वें वित्त आयोग ने सरकार के विभिन्न स्तरों पर वित्तीय संबंधों के बारे में उच्च स्तरीय विचार-विमर्श किया
15वें वित्त आयोग ने आज सरकार के विभिन्न स्तरों पर वित्तीय संबंधों के बारे में उच्च स्तरीय गोजमेल सम्मेलन का आयोजन किया। इसका संचालन आयोग के अध्यक्ष श्री एन.के. सिंह द्वारा किया गया। यह बैठक विश्व बैंक, ओईसीडी तथा एडीबी की साझेदारी में आयोजित की गई। यह बैठक वित्त आयोग के लिए इन तीनों संगठनों के महत्वपूर्ण कार्यों के समापन के लिए थी।
बैठक को संबोधित करते हुए वित्त आयोग के अध्यक्ष ने बैठक के चार तकनीकी सत्रों की चर्चा की। इन सत्रों में शामिल हैं-
- सब-नेशनल ऋण
- ट्रांसफर डिजाइन प्रोत्साहन तथा वित्तीय समानीकरण
- सब-नेशनल बजट तथा सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली
- सरकार के तीसरे सोपान के वित्त
इससे पहले आयोग ने अप्रैल, 2018 में ओईसीडी के साथ और जुलाई, 2018 में विश्व बैंक के साथ अलग-अलग कार्यशालाओं का आयोजन किया था, जिसमें वित्तीय संघवाद तथा अंतर-सरकारी अंतरण से संबंधित विषयों पर प्रारंभिक विचार और अनुभवों पर चर्चा की गई थी। आज की यह बैठक आयोग के लिए विश्व बैंक, ओईसीडी तथा एडीबी द्वारा किए गए कार्यों का समापन के लिए थी। बैठक में विश्व बैंक, ओईसीडी तथा एडीबी की टीमों द्वारा किए गए शोध और विश्लेषण कार्यों के निष्कर्ष के बारे में चर्चा की गई।
सब-नेशनल ऋण, वित्तीय नियम तथा संवहनीयता
- इस वित्त आयोग के संदर्भों में संघ तथा राज्यों के ऋण के वर्तमान स्तर की समीक्षा करना था और ठोस वित्तीय प्रबंधन के लिए वित्तीय मजबूती के रोडमैप की सिफारिश करनी थी।
- संशोधित एफआरबीएम अधिनियम के अनुसार केन्द्र सरकार निम्नलिखित कार्य सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएगीः
- सामान्य सरकारी ऋण 60 प्रतिशत की सीमा से अधिक न हो।
- केन्द्र सरकार का ऋण वित्तीय वर्ष 2024-25 के अंत तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 40 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
- 2018-19 के लिए केन्द्र सरकार का अनुमानित ऋण जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 48.9 प्रतिशत है। आशा है कि केन्द्र सरकार की देनदारियां 2019-20 में जीडीपी के 47.3 प्रतिशत तक कम हो जाएंगी। (2019-20 बजट के अनुसार)
- मार्च, 2017 के अंत में राज्य सरकारों की बकाया देनदारियां जीएसडीपी की 23.4 प्रतिशत थीं। पंजाब में यह देनदारी 26.3 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 15.1 प्रतिशत थी। (राज्यों के बजट पर आरबीआई का अध्ययन)
- इन सब कारणों से 2020-2025 के लिए रोडमैप तैयार करना आयोग के लिए महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण कार्य हो गया है।
- आज निम्नलिखित विषयों पर चर्चा की गईः
- देनदारियों की चालू प्रवृतियों की दृष्टि से केन्द्र और राज्यों के बीच इस 60 प्रतिशत का बंटवारा क्या होना चाहिए।
- राज्यों के बीच समुच्च राज्य देनदारी के आपसी वितरण के निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा जाए।
अंतर-सरकारी अंतरण डिजाइन, प्रोत्साहन तथा वित्तीय समानीकरण
- आयोग का एक प्रमुख कार्य है संघ तथा राज्यों के वित्तीय संसाधनों के असंतुलन की समस्या को सुलझाना।
- सब-नेशनल सरकारों को फॉर्मूला आधारित अंतरण तय करते समय समानीकरण महत्वपूर्ण विचारणीय विषय है।
- इस संदर्भ में गोलमेज बैठक में सेवा डिलिवरी की यूनिट लागत पर डाटा की कमी तथा केन्द्र और राज्यों की कर योग्य क्षमता पर विचार करते हुए भारतीय संघ के लिए समानीकरण योजना में उपलब्ध विकल्पों पर चर्चा की गई।
- आयोग के संदर्भों में राज्यों को कार्य प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन की सिफारिश करने का कार्य दिया गया था। इस सांकेतिक सूची में जीएसटी, जनसंख्या नियंत्रण, पूंजी खर्च बढ़ाना, अग्रणी कार्यक्रमों को लागू करना शामिल है। बैठक में यह भी चर्चा की गई कि पहले किए गए कार्यों के लिए संभावित कार्य प्रदर्शन या पुरस्कारों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। हिस्सेदारी और सक्षमता के बीच संतुलन आवश्यक है। यह देखते हुए कि सक्षमता के मामले में अधिक उन्नत राज्य सामान्यतः बेहतर अंक हासिल करेंगे।
- संबंधित मामलों में अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों पर भी चर्चा की गई।
सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन
- पीएफएम प्रणालियों में सुधार एक निरंतर प्रक्रिया है। पहले के वित्त आयोगों ने संघ तथा राज्यों दोनों की पीएफएम प्रणालियों के विभिन्न पहलुओं पर सिफारिश की थी, जिसमें बजटीय तथा लेखा प्रक्रियाओं, वित्तीय रिपोर्टिंग पर फोकस किया गया था।
- ऐसे सुधारों की गति धीमी रही है। संभावित कार्यों में संचालन तथा इन सिफारिशों को लागू करने के लिए संस्थागत ढांचे का संघ स्तर तथा राज्य स्तर पर अभाव और अन्य संभावित कार्यों पर चर्चा की गई। सरकार के तीसरे सोपान पर राजस्व सृजन की बात पर चर्चा की गई कि तीसरे सोपान को किस तरह आत्म निर्भर बनाया जाए, विशेषकर तब जीएसटी में अनेक ऐसे कर समाहित हो गए हैं जो पहले उनके लिए राजस्व कमाते थे।
- भारत के विकेन्द्रीत प्रशासनिक ढांचे के लिए सरकार के तीसरे सोपान द्वारा राजस्व उगाही करना चिंता का विषय है। राजस्व बढ़ाने का एक प्रमुख स्रोत स्थानीय निकायों द्वारा संपत्ति कर लगाना है। कुछ स्थानीय निकायों ने अपने क्षेत्राधिकार में संपत्ति वसूली के काम को सुचारू बनाने के लिए अलग-अलग मॉडलों को अपनाया। लेकिन संपत्ति कर के माध्यम से राजस्व वसूली में सुधार करने में बहुत कम सफलता मिली है। इस क्षेत्र में आवश्यक सुधारों में वैश्विक व्यवहार, विकेन्द्रीकरण, अनुदान जैसी योजनाओं के माध्यम से स्थानीय सरकारों को अपने राजस्व बढ़ाने में मदद के उपायों पर भी चर्चा की गई।